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होते हुए बड़े / हेमन्त कुकरेती

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बड़े होते-होते ढेर सारी चीजे़ं हम तोड़ चुके होते हैं
उम्र बढ़ती है पर ज़रूरी नहीं कि कम हो जाएँ मुश्किलें
करते रहते हैं कितनी मूर्खताएँ
भावुकता की मार झेलकर छलनी हो जाते हैं हमारे शरीर
कमज़ोर पड़ जाते हैं दिमाग़

कितने सारे लोग बर्दाश्त करते हैं हमें
सहते हैं हमारे अन्याय चुप रहते हैं माफ़ नहीं करते
इसी तरह हमें मिलती है सज़ा

हमारे साथ इस दुनिया में आये लोग दुनिया से चले जाते हैं
कुछ लोग आकर रह जाते हैं सिर्फ़ हमारे लिए
हमें कभी नहीं मिलते कुछ हमें ढूँढ़ते रहते हैं
कुछ के लिए हम खोदते हैं पहाड़
कुछ हमारा पीछा करते हैं पत्थर लेकर

हमेशा तो हँस नहीं सकते हम
शोक में डुबा नहीं सकता हमें बड़े से बड़ा दुख
सदा के लिए
बड़े-बड़े आदमी आते रहते हैं हमारे जीवन में
कष्टों की तरह
अपनी विवशताओं और उनकी इच्छाओं के खिलाफ
हम बड़े हो जाते हैं

ज़्यादा खाने के लिए भूखे रहते हुए हम कहीं बड़े होते हैं
कहीं प्यासें अड़ी होती हैं हमें बुझाने को
इस तरह बड़े होने में हम कहीं होते हैं छोटे

कौन नहीं जानता हमारे बड़े होने में छोटे होते जाते हैं कपड़े
सबको पता है कि
कपड़े पहनते हुए वह कपड़ों के सामने भरसक छुपाता है शर्म
और सिन्थेटिक रेशे की तरह हो जाता है नंगा
हमें बड़ा करते हुए कई चीजे़ं खो जाती हैं
टूट जाते हैं हम कुछ चीज़ों के लिए
चोरी हो जाती हैं कुछ चीजे़ं छीन ली जाती हैं हमसे

हमारे बड़े होने का चक्कर लुटने और गुमा देने का है
या चीज़ों के आगे कम पड़ने का

बड़े होते-होते हम टूट चुके होते हैं बड़ी बुरी तरह