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होते हैं रंग हजार / सांवर दइया
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मैं ने यह कब कहा
मैं ने नहीं कही यह बात-
हम-तुम एक ।
लेकिन
तुम तक पहुंची जो बात
वह मेरी नहीं
फिर कैसे हो सकता है- अर्थ मेरा ?
जरूरत है इतना-सा जान लें
यह दुनिया है बाजार
और हवा के होते हैं रंग हजार !
अनुवाद : नीरज दइया