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होरी / श्रीस्नेही
Kavita Kosh से
रंगी दे हो रंगी दे चुनरी चितचोर फागुन शोर करै,
अंग-अंग फड़कै छै अँखिया साँझ-सबेरे भोर,
फागुन शोर करै!
केसर थाल सजायकेॅ बैठली ल8केॅ रंग अबोरा!
नैन-कजरिया धुलि-धुलि गेलै देखै न श्याम शरीरा!!
फागुन शोर करै!
द्वार खड़ी निज सजधज बैठी कान्हके बाट निहारै!
आँगन आबै वंशी बजैया रंगभरी गागर डारै!!
फागुन शोर करै!
सुन गोपियन के दरद पै दौड़ै कान्हा ले पिचकारी!
रंग गुलाल बरसलै पल में गोपी भेलै मतबारी!!
फागुन शोर करै!