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होली में चोली केॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
होली में चोली केॅ दाम बढ़ी जाय छै।
होली में रंगोली केॅ काम चढ़ी जाय छै।
जवानी केॅ मस्ती में कुच्छो नैं सूझै छै,
बाहर निकलथैं आँख लड़ी जाय छै।
नारी-नर केॅ बाते की? कीट पतंग बौराबै छै,
कहला सें की होतै? लगाम सड़ी जाय छै।
ढोलक मंजीरा जब दरवाजा पर नाचै छै,
कुंभकरनी निंदिया भी खड़ी हो जाय छै।
कोयल जब कुहकै छै सुरभित बगीचा में
बड़का-तगड़ा योगी केॅ लँगोटा कढ़ी जाय छै।
पशु-पंछी पेड़ सम्भे पगलैलॅ छै
सोंटाँ की करतै? बेकाम छड़ी जाय छै।