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होले-तिहार / कोदूराम दलित

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होले तिहार बड़ निक लागे
सबके मन-मा उमंग जागे ।
समधिन मारे पिचकारी,
समधी ला बड़ सुख-सुख लागे ।

आमा मऊँरिन, परसा मन, पहिरिन केसरिया हार
जाड़-घाम दुन्नो चल देइन अपन-अपन ससुरार ।
का बस्ती, का वन-उपवन, कण-कण मा खुशिहाली छागे ।

नंदू नंगत नगाड़ा पीटय, फगुवा गावै फाग
धन्नू ढोल, मंजीरा मन्नू, झंगलू झोंके राग ।
सररर सराईस सरवन हर, सब्बो डौकी शरमागे ।

मंगलू घर के नवा मंडलिन, घिव-मा बरा पकाय
जी छुट्टा मंगलू मंडल हर, चोरा-चोरा के खाय ।
जब मंडलिन गुरेरे आँखी, तब बारी कोती भागे ।

अच्छा मनखे दूध पिये, घिनहा मन मदिरा भंग
छेना लकड़ी झटक झटक के, करें सबो ला तंग ।
टोरें छानी -छप्पर ला, ईंकर मारे जी उकतागे ।

अच्छा मनखे मन होले के, गावें सुन्दर गीत
घिनहा मनखे बकें बुकावें, करें गजब अनरीत ।
समझावब मा इन्हला, संत महात्मा घलो हार खागे ।

अच्छा मनखे मन बड़ सुन्दर, खेलें रंग गुलाल
घिनहा मन धुर्रा ला सींचें, सबके करें बेहाल ।
छोड़ो अनरित भइया हो रे, नवा जमाना अब आगे ।