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हौ दैव किएक बिआह केलौं / नवल श्री 'पंकज'

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हौ दैव किएक विआह केलौं जिनगी अपन तबाह केलौं
भने छलहुँ मस्तीमे मातल बूझि-सूझि कष्ट अथाह केलौं

कतेक अनोना कबूला पातरि कीर्तन आर नबाह केलौं
कनिआँ-कनिआँ रटि-रटि क' मोनके किएक बताह केलौं

आन्हर भेल छलौं नै सूझल, की नीक कथी अधलाह केलौं
मधुघट पीबा केर चक्करमे जिनगी खौलैत चाह केलौं

नरहोरि भेल बौआ रहलौं करेजक कांच चोटाह केलौं
एहन हराहिसँ संग भेल जे अपनोकें मरखाह केलौं

रहि-रहि मूँह फुलाबैथ ओ घुरि-घुरि हम सलाह केलौं
स'ख-श्रृंगार पुड़ाबय पाछू खटि-खटि देह अबाह केलौं

लेर खसल किए लड्डू लेल किएक मोन सनकाह केलौं
घर-घरारी लागल भरना जानि क' जिनगी बेसाह केलौं

खीर नञि ओ घोरजौर छलै मधुरिम मोन खटाह केलौं
देखि कतहु मउहककें थारी "नवल" अनेरे डाह केलौं