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हौले सें मुस्कैइहो हे / अनिल कुमार झा

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विनिया न डोलैहियो राजा दरद हाथ न करिहो हे
हम्में ठाड़ी अँचरा लैके हौले सें मुस्कैइहो हे।

हमरा तेॅ कहले नै पैन्हें धामोॅ सें घमजोर छोॅ
बात बात पर डाँटी देल्हें कैन्हें तोंय मुँहजोर छोॅ,
बानी पानी शीतल ठंडा मोन करौ नहलैइहों हे
हम्में ठाड़ी अँचरा लैके हौले से मुस्कैइहो है।

धूप चैत के चम-चम चमकै आँगन द्वार खमारी पे
पीछू पीछू हवा चलै छै टप्पर टाप सवारी लेॅ,
पाँव तोरोॅ न दूखेॅ साजन ख़ुद से ज़रा संभरिहो हे
हम्में ठाड़ी अँचरा लैके हौले सें मुस्कैइहो हे।

रोज मुझौसा धूप आबै छै जखनी साजन खेतोॅ में
सोता पानी घुसले जाय छै रोज़ रोज जे रेतो में,
चिंता केरो बात करे जें ओकरा तोंय बहलइइो हे
हम्में ठाड़ी अँचरा लैके हौले सें मुस्कैइहो हे।

बरदा भागी आबी गेलै, जानौं की सोची के आय
गैया ऐली छिपली-छिपली खड़ा बथानी पर पगुराय,
संग तोरो जे बात करौ ते हौले से सहलइहो हे
हम्में ठाड़ी अँचरा लैके हौले सें मुस्कैइहो हे।