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हौसला हो / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
वक़्त आ गया है
कि चोंच में
दबे तिनके को
छूट जाने दो
और बिना चाह के
बिना आग्रह के
उड़ो ऊँचाइयों को पकड़ने
पर हैं तो उड़ोगी ही
निशित पर यह मत जानो
नहीं हैं तो नहीं उड़ोगी
यह भी मत मानो
जानने का दम्भ क्यों पालो
मान लेने की विवशता भी क्यों हो
जी लेने की ललक हो
उड़ जाने का हौसला हो बस