भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
’कुछ नहीं’ / भावना मिश्र
Kavita Kosh से
‘कुछ नहीं’
ये दो शब्द नहीं
किसी गहरी नदी के दो पाट हैं
जिनके बीच बाँध रखा है हर औरत ने
अनगिन पीड़ाओं, आँसुओं और त्रास को
इन दो पाटों के बीच वो समेट
लेती है सारे सुख दुःख
बहुत गहरे जब मुस्काती है
या जब असह्य होती है
मन की व्यथा
तब हर सवाल के जवाब में
इतना भर ही
तो कह पाती है
औरत
‘कुछ नहीं’