भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गाँधीजी" केर धरती पर बहलै / नवल श्री 'पंकज'
Kavita Kosh से
					
										
					
					"गाँधीजी" केर धरतीपर बहलै शोणितक धार कोना 
"भगत सिंह" केर अंगनामे जनमल अत्याचार कोना
कतए गेलै "आजाद"क नगरी रूसि "लक्ष्मी" कत' पड़ेली 
देव आ विद्वानक नगरीसँ बिला रहल संस्कार कोना 
बिसरल-बिलटल छै अपनैती "मालवीय-मौलाना"कें
जाति-पाति आ भेदभावकें पसरल अछि विकार कोना 
आब नै जनमै "लाल" किए, की देशक माटि भेलै उस्सर 
सगरो लोभी-कपटीक अछि लागल एते पथार कोना 
जकर नेत आ नीति सशंकित से नेता बनि बैसल छै
करै ओसूली जनता सभसँ उपटत भ्रष्टाचार कोना 
मतकें मान बिना बुझने बेर-बेर मतदान केलहुँ
मतकें मान नै बूझब जा जागत गुम सरकार कोना
छोड़ब नै अधिकार अपन फांड़ बान्हि ली चलू "नवल"
बिनु मँगने नै भीख भेटै भेटत फेर अधिकार कोना
 
	
	

