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"माया"श्रृंखला-५/रमा द्विवेदी

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१-विश्व के इतिहास में,
माया के पन्ने खास हैं।
युद्ध कितनें हो गए ?
माया का ही इतिहास है॥

२-अंग्रेज भी आए यहां,
माया कमाने के लिए।
माया ने घनचक्कर बनाया,
माया को पाने के लिए॥

३-जो कुछ कमाया था यहां,
सब कुछ गंवा करके गए।
ब्याज में काला हुआ मुख,
इतिहास काला रच गए॥

४-माया का जादू सर चढ़ा,
अब खेलने में कष्ट है।
हार जाते हैं स्वयं ही,
इश्तहार में वे व्यस्त हैं॥
 
५-माया की ही छाया में देखो,
आतंक भी लहलहाया है।
लील जाने को यह सब कुछ,
'सुरसा'बन जग में छाया है॥