भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

'तू' / पढ़ीस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिला न तू, तेरी तसवीर समाई दिल में;
आरजू-दीद<ref>देखने की इच्छा</ref> तेरी दिल ने लगाई दिल में।
हिज्र<ref>राह, मार्ग, तड़पना</ref> में तेरे पशेमाँ<ref>परेशान, शर्मिन्दा</ref> न कहें मुझको रक़ीब <ref>एक ही माशूक के दो चाहने वालों के परस्पर सम्बम्ध-फारसी शब्द ‘रकाबत’ से बना है</ref>;
तेरी तरवीर ही जब दिल ने बनाई दिल में।
क्यों कहें, किससे कहें, भाता है तू क्यों मुझको ?
तेरी तसवीर ही जब दिल ने चुराई दिल में।
तु है बेनाज<ref>अभिमान रहित, बिना घमंड के</ref>, मगर मैं हुआ नाज़ाँ<ref>नाज़ या नखरा सहने वाला</ref> तुझ पर;
पस, इसी से तेरी तसवीर चुराई दिल नें।
यह सही है कि तू कहलाता है चितचोर बड़ा;
पर किसी ने तेरी तसवीर चुराई दिल में।
मुकट की शान पै क़ुरबान हो गया काफ़िर;
डर ही क्या यार की तसवीर चुराई दिल ने।

शब्दार्थ
<references/>