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'यामा' कवि से / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
छू नहीं सकती
साँस जिसे
वर्ण गीत जिसे
किंतु मर्म।
नींद का संगीत
गाकर
विसुध खग।
जुगनुओं के सूर्य
अनगिन सूक्ष्मर
तुहिनकण की स्त्ब्ध रजनी में।
विशाल आह्वान
बहा आता लिये
एक गौरव-गान।
हृदय पर मधुमास के
टुकड़े
फूल के, बिखरे।
कुछ नहीं लाया
प्रेम,
अश्रु अश्रु अश्रु
पुन:
पुन:
कब न लजी मैं
किंतु आज
ओ प्रतीक्षे!