भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
'सती को लेने जब रथ आया / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
सती को लेने जब रथ आया
सब रह गये ठगे से, कोई बढ़ कर रोक न पाया
आश्रम सारा धुआँ धुआँ था
सम्मुख पावक भरा कुआँ था
जिसमे तेज विलीन हुआ था
लिए सुकोमल काया
मलिन दिशायें काँप उठा नभ
सुमन जहाँ केवल था सौरभ
सर्व -समर्थ नाथ को हतप्रभ
देख विश्व अकुलाया
सिसक रहे थे लव कुश भू पर
सब परिजन, पुरजन थे कातर
बाल्मीकि मुनि ने तब उठ कर
मधुर सुरों में गाया
सती को लेने जब रथ आया
सब रह गये ठगे से, कोई बढ़ कर रोक न पाया