भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अँगना बहारे-बहारे लवले में घूरवा हे / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अँगना बहारे-बहारे लवले में घूरवा हे, अब सुनु हे सखि हे,
जामे लवरंग गाछ, से हो रे घूरवा जामे लवरंग गाछ।।१।।
एक पात लवरंग, दूसरे पात छाजनीया हे,
अब सुनु सखि हे, हइहे, तिरपन पात तरनी रे बहस।।२।।
आहे तिरपन पात फरे फुलाइ रे गले, भुइयाँ लोढ़े डारी हे,
अब सुनु हे सखि हे, हइहे, से हो रे मृगा चरि चुनी रे जाय।।३।।
अबकी दवड़ रे मिरिगा जाहू तूहूँ अइब रे,
अब सुनु रे सखि रे, हइहे, मरिबों में धेनुखा चढ़ाय।।४।।
धेनुखा चढ़ावइ के हे, टूटी गइले गुनवाँ हे,
अब सुनु हे सखि हे, हइहे, टूटी गेला हे गजमोती हार।।५।।
कवने बिछेला रे हारवा, कवने गुन गाइले रे,
अब सुनु हे सखि, हइहे, कवने रे धनिया करत रे सिंगार।।६।।
सासु बिछेली रे हारवा, ननदे गुन गइहें हे, अब सुनु हे सखि, हइहे,
हमरे धनि हो करत रे सिंगार, के मोरे धनि रे करत रे सिंगार।।७।।