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अँगूठी / अविनाश मिश्र
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इसका मुहावरा ही और है
यह सबसे पहले आती है
शेष सब इसके बाद —
एक भार की तरह
आत्म-प्रचार की तरह
इसमें उदारता भी स्वाभाविक होती है और उपेक्षा भी
यह जब जी चाहे उतारकर दी जा सकती है
उधार की तरह