अँधा युग / अशोक तिवारी
अँधा युग
उजाले को क़ैद कर 
घुप अँधी गुफा में गहरा साया छाया है
गहराते बादलों की गड़गड़ाहट 
सुनाई देती है हर सूं 
अवाम के सुरों को पढ़ा जा रहा है कुछ यूं..
झूठों के अंबार के साथ विकास के वादे लाया है
जिन्हें हिंदुस्तानी गोयबेल्सों ने बार-बार दोहराया है
अँधा युग आया है
खिड़कियों/दरवाज़ों पर 
टँकी है आहट उसके आने की 
दबे पाँव सूराखों से लाते हुए मौसम की टोह
प्रवेश करता है उस गोली की तरह
जो बिंधी थी कभी हज़ारों-लाखों मज़लूमों के सीने में 
हर उस मुल्क में 
पैदा होते रहे हैं जहाँ  
मुसोलिनी और एडोल्फ़ हिटलर
हर-हर भाई / घर-घर भाई के नारों में देश समाया है
अँधा युग आया है
नए-नए नारों के साथ
दाख़िल होता है रोज़ हमारी साँसों में 
कभी दाएँ से तो कभी बाएँ से उझककर
जहाँ धृतराष्ट्र सुनता है संजय से वही 
जो वो सुनना चाहता है 
रोशनी के नाम पर 
हस्तनापुर में जिसने अँधेरा बिछाया है
अँधा युग आया है 
अच्छे दिनों की चासनी में 
नमकीन तड़का लगाया है 
हाथ जोड़कर, मुस्कराकर होठों को थामे हुए 
करते हुए तिरछी निगाहों से इशारे 
विकास के पुतले को कलावे में लपेटकर लाया है
‘भूतो न भविष्यति’ समाज का सपना 
जिसने बाज़ार में सजाया है
अँधा युग आया है
यही युग है जहाँ 
नहीं होगा किसी में अंतर 
शक्लो सूरत में, भाषा में बोली में 
कपड़े लत्तों में,उठने बैठने में
खाने-खिलाने में 
सोचने-विचारने में 
हर फ़र्क कर दिया जाएगा ग़र्क
सपनों को देखने की होगी आज़ादी
सभी को एक ही तरह से
विधर्मी और दबे कुचलों की औकात को 
रखते हुए ठेंगे पर रामराज्य लाया है
अँधा युग आया है।
अँधा युग आया है
कि अँधेरे में आप 
नहीं कर सकते पहचान किसी रंग की
कि कौन है छोटा, कौन बड़ा 
कौन दुबला कौन तगड़ा
कौन बचा कौन मरा 
भूखा कौन और कौन है प्यासा
कौन हँसता, कौन रुँआसा
ज़िंदगी को अबूझ पहेली जिसने बनाया है
वही है जो अँधा युग लाया है
जी हाँ,  
अँधा युग आया है!!
....................
	
	