अँधियारे में राधा आकर रो गयी।
मोहन की बाँसुरी कहीं है खो गयी॥
छिड़ी महाभारत है अंदर औ बाहर
प्रेम शांति भावना हृदय की सो गयी॥
नये संस्करण नर नारी संदर्भ के
व्यर्थ यहाँ गीता गायत्री हो गयी॥
ढूँढ़ रही सीता रावण का अंतः पुर
द्रुपद सुता निर्वस्त्र गली में हो गयी॥
राम कृष्ण ईसा या बुद्ध न जन्मेंगे
गंगा खुद अपने पापों को धो गयी॥