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अँधेरा है घना इतना यहाँ पर हो रहा क्या है / रंजना वर्मा
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अँधेरा है घना इतना यहाँ पर हो रहा क्या है।
बहुत गुमसुम तमन्ना है उसे जाने हुआ क्या है॥
हमेशा सोचता है शख़्स जो ख़ुद के लिये केवल
भला किस भाँति समझायें उसे होती वफ़ा क्या है॥
चले हैं लोग कुछ लिखने मुक़द्दर हुक्मरानों का
न पूछें आम जनता से बता तेरी रज़ा क्या है॥
बड़ी थी आरजू अपनी कि देखें यार को जीभर
मगर थी राह हर सूनी नहीं जाना पता क्या है॥
ज़माना इश्क़ का दुश्मन हमेशा से रहा लेकिन
कभी आशिक़ न ये पूछे कि उल्फ़त की सज़ा क्या है॥
मुहब्बत वह नशा है जो जहानत को चुरा लेता
नहीं फिर सूझता दिल को भला क्या है बुरा क्या है॥
बुलंदी आसमानों की छुए कब कौन-सा ज़र्रा
किसे मालूम है किसके मुक़द्दर में लिखा क्या है॥