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अँधेरा है घना फिर भी ग़ज़ल पूनम की कहते हो / डी .एम. मिश्र
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अँधेरा है घना फिर भी ग़ज़ल पूनम की कहते हो
फटे कपड़े नहीं तन पर ग़ज़ल रेशम की कहते हो
ग़रीबों को नहीं मिलता है पीने के लिए पानी
मगर तुम तो ग़ज़ल व्हिसकी गुलाबी रम की कहते हो
चले जब लू बदन झुलसे सुना तुमको मगर तब भी
हवायें नर्म लगती हैं ग़़ज़ल मौसम की कहते हो
तुम्हें मालूम है सूखे हुए पत्तों पे क्या गुज़री
गुलों के नर्म होंठों पर ग़ज़ल शबनम की कहते हो
तुम्हारे हुस्न के बारे में हमने भी है सुन रक्खा
हमारा जख़्म भी भर दो ग़ज़ल मरहम की कहते हो