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अँधेरी रात है किरणें सुबह की लाओ भी / अभिनव अरुण
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अँधेरी रात है किरणें सुबह की लाओ भी
सितारों स्वप्न सुनहरे मुझे दिखाओ भी
भला भला सा मुहूरत निकल न जाए कहीं,
उनींदे सूर्य को शबनम छिड़क जगाओ भी
निकल भी आओ कभी यादों के घरौंदे से,
महकती धूप में साँकल कभी बजाओ भी
फ़लक का प्यार है पर्वत से गिर रहा झरना,
उदास क्यों हो ज़मीं तुम नज़र उठाओ भी
हमें यकीन है तुम बेवफ़ा नहीं लेकिन,
हमारे वास्ते छत पर निकल के आओ भी
नज़ारे देख रहा है ज़माना उल्फ़त का,
हमारा नाम लिखो रेत पर मिटाओ भी
नहीं है हित में किसी के, कि नाव तट पे रहे,
भंवर का एक नया सिलसिला चलाओ भी
मैं चाहता हूँ ग़ज़ल में जिगर का खून भी हो,
मुझे रक़ीब से मेरे कभी मिलाओ भी
सियाह रात में देखो नक़ाब को हटते,
कभी चिराग़ जलाओ कभी बुझाओ भी