अँधेरी रैन में जब दीप जगमगावतु एँ।
अमा कूँ बैठें ई बैठें घुमेर आमतु एँ॥
अब’न के दूध सूँ मक्खन की आस का करनी।
दही बिलोइ कें मठ्ठा ई चीर पामतु एँ॥
अब उन के ताईं लड़कपन कहाँ सूँ लामें हम।
जो पढते-पढते कुटम्बन के बोझ उठामतु एँ॥
हमारे गाम ई हम कूँ सहेजत्वें साहब।
सहर तौ हम कूँ सपत्तौ ई लील जामतु एँ॥
सिपाहियन की बहुरियन कौ दीप-दान अजब।
पिया के नेह में हिरदेन कूँ जरामतु एँ॥
तरस गए एँ तकत बाट चित्रकूट के घाट।
न राम आमें न भगतन की तिस बुझामतु एँ॥