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अँधेरे में आवाज़ / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
गहरा हो अँधेरा जब
आवाज़ तब देना जरूर
कहीं न कहीं कदम
ढूँढ ही लेंगे
अँधेरे का किनारा
ख़ामोशी हो जब चारों ओर
तो शांत मत रहना
चीखना पड़े तो चीखना
तोड़ देना सन्नाटे की परत
बाँध कर वक्त की पूँछ से पटाका
हवा रुके तो गरजना तूफ़ान की तरह
झील सोये तो उछालना कंकर
अमावस की हो रात
तो चाँद को पुकारना ज़रूर
जीवन रुके तो समझना
कि बदलाव की जरूरत है
गहरा हो अँधेरा जब
आवाज़ तब देना ज़रूर
कहीं न कहीं
कदम ढूँढ ही लेंगे
अँधेरे का किनारा।