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अँधेरों की सभा में सर उठाना सीख जाते हैं / अशोक रावत
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अँधेरों की सभा में सर उठाना सीख जाते हैं,
दियों को बस जला दो, झिलमिलाना सीख जाते हैं.
वो ये भी सीख जाते हैं, सफ़र कैसे किया जाए,
क़दम जो राह पर आगे बढ़ाना सीख जाते हैं.
किसी तालीम के मोहताज होते ही नहीं पौधे,
वो खुद मिट्टी में अपनी जड़ जमाना सीख जाते है.
कलम जो थाम लेता है, वही झुकता नहीं, वरना,
सभी हालात से एक दिन, निभाना सीख जाते हैं.
किसी मजदूर को अपने लिए कोई छत नहीं मिलती,
वो दुनिया के लिए तो घर बनाना सीख जाते है.
कभी इंसान की इज्ज़त करेंगे सोचिए भी मत,
जो हर पत्थर के आगे सर झुकाना सीख जाते हैं.
ज़रा सी देर में पहचान लेते हैं हवा का रुख,
पतंगें, जिस समय बच्चे, उड़ाना सीख जाते है.