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अँधेरों में जब तक उजाले रहेंगे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अंधेरे में जब तक उजाले रहेंगे
सदा दहशतों के हवाले रहेंगे
लगी बंदिशें जब तलक बोलने पर
लबों पर लगे यूँ ही ताले रहेंगे
अगर पीर समझी नहीं मुफ़लिसों की
सदा दूर मुँह से निवाले रहेंगे
नहीं सीख ली ग़र तवारीख़ से तो
कई नाग बाहों में पाले रहेंगे
समझ लेंगे जिस दिन वक़त औरतों की
न सीता को घर से निकाले रहेंगे
लगाते वतन के लिये जां की बाज़ी
वतन में हमेशा जियाले रहेंगे
अगर लड़खड़ाये कदम राह में तो
उसे बढ़ के हम सब सँभाले रहेंगे