अंधेरे में जब तक उजाले रहेंगे 
सदा दहशतों  के हवाले  रहेंगे 
लगी बंदिशें जब तलक बोलने पर
लबों  पर  लगे  यूँ  ही  ताले  रहेंगे 
अगर पीर समझी नहीं मुफ़लिसों की
सदा   दूर    मुँह   से   निवाले   रहेंगे 
नहीं सीख ली ग़र  तवारीख़ से तो
कई  नाग   बाहों   में   पाले  रहेंगे 
समझ लेंगे जिस दिन वक़त औरतों की
न  सीता  को   घर   से   निकाले   रहेंगे 
लगाते  वतन के लिये जां की बाज़ी
वतन  में    हमेशा    जियाले   रहेंगे 
अगर  लड़खड़ाये  कदम  राह में तो
उसे बढ़ के हम सब  सँभाले  रहेंगे