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अंकुर नहीं फूटा / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'
Kavita Kosh से
तुम्हारे हाथ में सरकार
सौंपी थी समझ अपना
मुझे डर है न थम जाए
कहीं गणतंत्र का पहिया
किसी भी योजना के बीज का
अंकुर नहीं फूटा
किया वादा सी क्षण काँच की
मानिन्द वह टूटा
मुकदमे फौजदारी के,
लगे थे सैकड़ों जिस पर
वही शठ न्याय के हाथों
हमेशा जेल से छूटा
तुम्हारे हाथ में पतवार
बस तुम ही खिवैया हो
पता क्या कब डुबो दोगे
हमारे देश की नइया
अगर तुम हाथ रख दो तो
धनी हो जाय भिखमंगा
अगर मर्जी तुम्हारी हो
शुरू हो जायेगा दंगा
सदा जनतंत्र के शोषक रहे हो
तुम पहन चेहरे
नहाया आपने जब से
अपावन हो गई गंगा
तुम्हारे पास जन का प्यार
तुम नेता हमारे हो
बताना छोड़ दो अब तो
खड़ी हर भैंस को गइया