भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंखियों में आ जा निंदिया / अलका सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हो के चांदनी पे तू सवार
अंखियों में आ जा निंदिया...
खूब पढ़ेगी, खूब बढ़ेगी
जैसे कोई चढ़ती बेल,
हर मुश्किल से टकराएगी
जीतेगी जीवन का खेल।
तू पा लेगी वो ऊंचाई
हैरत से देखे दुनिया
अंखियों में आ जा निंदिया...
धीरे-धीरे झूला झूले
जा पहुंचेगी अम्बर पार,
उड़ने वाला घोड़ा लेक
आएगा एक राजकुमार।
डोली ले जाएगा एक दिन
सजकर बैठी है गुड़िया।
अंखियों में आ जा निंदिया...