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अंगारों का प्रसाद / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
मरघट से शुरू हुई
मेरी यात्रा
फिर वापस भी आना है
लौटते वक्त
अंगारों का प्रसाद
उसकी चौखट पर
तसल्ली से
चढ़ाना है।