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अंगार कैसे आ गए / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु
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हर दिशा के हाथ में अंगार कैसे आ गए ।
बेकफ़न ये लाश के उपहार कैसे आ गए ॥
मोल मिट्टी के बिके हैं ,शीश कल बाज़ार में ।
दोस्तों के वेश में ,खरीदार कैसे आ गए ॥
सरहदों के पार था अब तक लहू अब तक क़तल
देखते ही देखते इस पार कैसे आ गए ॥
सिर उठाती आँधियाँ ,ये खेल होती हैं नहीं ।
नमन करने को इन्हें लाचार कैसे आ गए ॥
यही चले थे सोचकर कि अमन अब हो गया।
खून के बादल यहाँ इस बार कैसे आ गए ॥