भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंगिका / अंगिका दोहा शतक / राहुल शिवाय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंग महाजनपद छिकै, धरम भूमि हो भाय ।
भाषा एकरोॅ अंगिका, सीधे ह्रदय समाय ।1।

भाषा हमरोॅ अंगिका, हमरोॅ माय समान ।
तन-मन-धन करतेॅ रहौं, ममता पर क़ुर्बान ।2।

धरती, भाषा, माय सेॅ, नै छै बढलोॅ कोय ।
पूजै ‘राहुल’ जें सदा, से ही हरि के होय ।3।

निज भाषा के साथ मेॅ, अपनापन जे होय ।
‘राहुल’ करतै की भला, एकरोॅ परतल कोय ।4।

भारतेन्दु के बात केॅ, राखोॅ ‘राहुल’ याद ।
अपनोॅ भाषा में करोॅ, लोगोॅ सेॅ संवाद ।5।

बुझतै सबनेॅ बात केॅ, जैतै मोॅन समाय ।
निज बोली मेॅ बोलभौ जों तों बात ‘शिवाय’ ।6।

अंग वेद के काल सेॅ, छै प्रसिद्ध हो भाय ।
आदि अंग के अंगिका, भाषा मधुर ‘शिवाय’ ।7।

संस्कार के गीत छै, लोकगीत छै भाय ।
झूमर-कजरी ठो करै, गद-गद मोॅन ‘शिवाय’ ।8।

बिहुला-सामा गीत केॅ, घर-घर गैलोॅ जाय ।
‘राहुल’ ! बाबा धाम के, गीत हिया हरसाय ।9।

सिद्धोॅ के भाषा छलै, बोलै छै इतिहास ।
‘राहुल’ होतै भोर हो, करनेॅ चलोॅ प्रयास ।10।



रचनाकाल- 1 अप्रेल 2013