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अंग्रेज स्तोत्र / भारतेंदु हरिश्चंद्र

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

स्टारार्थी लभते स्टारम् मोक्षार्थी लभते गतिं ।।

एक कालं द्विकालं च त्रिकालं नित्यमुत्पठेत।

भव पाश विनिर्मुक्त: अंग्रेज लोकं संगच्छति ।।

अर्थात इससे विद्यार्थी को विद्या , धन चाहने वाले को धन , स्टार-खिताब-पदवी चाहने वाले को स्टार और मोक्ष की कामना करने वाले को परमगति की प्राप्ति होती है । जो प्राणी रोजाना ,नियम से , तीनो समय इसका- (अंग्रेज - स्तोत्र का) पाठ करता है वह अंग्रेज लोक को गमन करने का पुण्य लाभ अर्जित करने का अधिकारी होता है ।