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अंग-अंग अप्रतिम अमित सौन्दर्य / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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अंग-‌अंग अप्रतिम अमित सौन्दर्य, अतुल माधुर्य महान।
दिव्य पवित्र अंग-सौरभ, संतत शुचि अधर मधुर मुसकान॥
नेत्र सुधावर्षिणी दृष्टिस्न्युत, चचलता, वक्रता विशाल।
दीर्घ कृष्ण कच, सोह चन्द्रिका, वेणि-सुगुिफत मालति-माल॥
सुकुमारता, सहज श्री-सुषमा, प्रियदर्शना, विलक्षण रूप।
सहज सरलता परम बुद्धिमाा, सेवा-रति, धैर्य अनूप॥
नित्य विरह-कातरता, मिलनोत्कण्ठा, नित्य-मिलन-‌अनुभूति।
निरभिमानता, मान-रूपता, वामभावना, विमल विभूति॥
विनयशीलता, शुचि विनम्रता, सर्वत्यागमयता अति पूत।
करुणामयता, अति उदारता, कर्मकुशलता रस-सभूत॥
साधुभाव, सौशील्य परम, चापल्य मधुर, गाभीर्य अपार।
गीत-वाद्य-शुचि-नृत्य-कुशलता, ललित अनन्त कला-‌आगार॥
प्रिय-गुण-वर्णन-मुखरा अति, मन मौन, नित्य उद्दीपित भाव।
स्व-सुख-कल्पनाशून्य सर्वथा, नित्य एक प्रियतम-सुख-चाव॥
सहज प्रेम-प्रतिमा, पर निजमें नित्य प्रेमशून्यता-जान।
आत्मनिवेदनमयता, पर है नहीं समर्पण-स्मृति-‌अभिमान॥
सखी-सहचरी-प्रेमविवशता, सबमें गुण-महिमाका भान।
सबके सुखमें सुखी सदा निज सुखका सहज त्याग निर्मान॥
सौत-प्रियता-सेवा सुखमय प्रियतम-सुख-सपादन-जन्य।
प्रियतम-वशीकरण गुणगणमय, परम त्यागमय जीवन धन्य॥
रति, स्नेह अति, प्रणय, मान शुचि, पचम राग तथा अनुराग।
सप्तम दुर्लभ भाव, प्रेम अष्टस्न्म अति महाभाव युत त्याग॥
आठोंसे सपन्न, इन्हींकी अगली शुभ परिणतिसे युक्त।
प्रियतम-महिषी-प्रेयसिगणमें प्रमुख सर्व-‌अर्पण-संयुक्त॥
प्रेम-विवशता मधुर, नित्य अभिसार-प्रियता, प्रिय-स्मृति-लीन।
नवनिकुजवासिनि, मधुभाषिणि, परमैश्वर्यमयी, शुचि दीन॥
ममतामयी मधुकरी करती प्रिय-पद-कज मधुर-रस-पान।
’मैं अभिन्न प्रियतमा श्यामकी’-एक अनन्य अहंका भान॥