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अंछरयों की राणी / केशव ध्यानी
Kavita Kosh से
झूम-झमा झम, खुटों का झाँवर रे,
अंछर्यो<ref>परी</ref> की राँणी आई, गीत गान्दरे।
नौ सोर मुरली बाजी, मोछंग<ref>एक गढ़वाली वाद्य यन्त्र</ref> की धुन म
फूलू की पंखुड़ी, भौंर का गीतू म।
.......ओजी हो
धम-धमा-धम,
भौंरों की बरात रे
अंछर्यों की राँणी आई, फूल फुलान्दी रे।
बाँज की डाल्यों म आई, बुराँस का फूलू म,
फ्योंलि का फूलू म आई, झमकदा गीतू म।
....ओजी हो
छम-छमा-छम,
खुट्यों का झाँवर ये
अंछर्यों की राँणी आई, गीत गान्द रे।
लंग-लंगी डाल्यों म आई, रुम-झुम पातु म,
छुणक्यलि<ref>बजती हुई</ref> दाथी म आई, घुगति<ref>एक पक्षी</ref> की घू घू म।
....ओजी हो
सर-सरा-सर, सर,
बथौं का दगड़ रे
अंछर्यों की राणी आई, मुल-मुल हैंसदी रे।
हो....हो.....हो!
शब्दार्थ
<references/>