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अंजाम आज खुद़ / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

अंजाम आज खुद़ से अनजान हो रहा है
आगाज़ ही अजल का सामान हो रहा है

कुछ और कह रही हैं लोहूलुहान राहें
कुछ और मंज़िलों से ऐलान हो रहा है

है चोर ही सिपाही मुंसिफ़ है खुद़ ही क़ातिल
किस शक्ल में नुमायाँ इंसान हो रहा है

जिनको मिली है ताक़त दुनिया सँवारने की
ख़ुदगर्ज आज उनका ईमान हो रहा है

देखा पराग तुमने दुनिया का रंग बोलो
इन हरक़तों से किसका नुक़सान हो रहा है।