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अंजाम जो भी हो कभी सोचा नहीं करते / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
अंजाम जो भी हो कभी सोचा नहीं करते
अपनी अना का हम कभी सौदा नहीं करते
सोचो कमी क्या रह गयी मेहनत में तुम्हारी
तक़दीर को हर वक़्त ही कोसा नहीं करते
बच्चों को बताने की है ये सख़्त ज़रूरत
नाजुक कली को शाख़ से तोड़ा नहीं करते
पीते हैं फ़क़त जश्न मनाने के लिए हम
अश्कों को कभी जाम में घोला नहीं करते
इंसान कहाने के भी क़ाबिल नहीं हैं वो
मज़लूम के जो काम आया ही नहीं करते