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अंजुरी / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
तुम कहते हो जितना सच है
बस उतना रह जाता,
शेष समय की अंजुरी से
बूँद-बूँद बह जाता
यह मेरी छोटी अंजुरी
बस सीमा है मेरी,
जितना इसमें आ जाओ
उतना तो, प्रिय रहना।