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अंततः हर जगह हो जाती खाली / विजय सिंह नाहटा
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अंततः हर जगह हो जाती खाली
जन्म जैसे एक बंद दरवाज़ा:
खुलता अंतहीन दीवारों के आर-पार
ईश्वर सौंपता उजाड़ मरुभूमि
करने हरी भरी
अनादि से एक अधूरा चित्र
करने समाहार रंग यात्रा का
खोलने चैतन्य के जंग खाये
बंद कपाट
जारी करता मुक्ति का बीहड़ मार्ग।
जो भर जाता नज़र में
वह महज़ उपस्थिति भर है
अंततः हर जगह हो जाती खाली
और; भर जाती नयी रिक्ति से।