भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतरंग साँस / पुष्पिता
Kavita Kosh से
तुम्हारा प्यार
मेरे प्यार का आदर्श है।
बादलों से बादलों में
क्षितिज की तरह बन गए हैं
हम दोनों।
प्यार में
समुद्र हुए हम दोनों
क्षितिज हैं सागर के।
प्यार में
समुद्र को पीता है आकाश
आकाश को जीता है समुद्र
वैसे ही
तुम मुझे
अपने कोमलतम क्षणों में
तुम्हारे प्यार की परिधि
मेरी सीमा और संसार...।