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अंतर्देशीय / लीलाधर जगूड़ी

Kavita Kosh से
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इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए

न अपने विचार। न अपनी यादें

इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए

न अपने संबंधों की छाप

न दुख, न शिकायतें

न अगली मुलाकात का वादा

न सक्रांमक बीमारियाँ

न पारिवारिक प्रलाप

न अपने हस्ताक्षर

वरना यह पत्र पकड़ा जा सकता है

इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए

क्योंकि जिनका 'ठिकाना' नहीं

वे असहाय सबसे ज्यादा संदिग्ध हैं

बाहर एक ओर किसी पानेवाले का नाम और पता

दूसरी ओर किसी भेजनेवाले का हस्ताक्षर जरूर हो

समाचार खुद हिफाजत चाहते हैं

इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए

भेजनेवाला जानता है

क्या नहीं लिखा गया

क्यों नहीं लिखा गया पढ़नेवाला जानता है

कोरा, वह भी बाँच लेगा

एक भी आखर जिसके हिस्से आया

इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए

न कोई विस्फोटक शब्द

न बच्चा पैदा होने की खबर

न कोई आकस्मिक मृत्यु

न बम

न कोई वाजिब तर्क

न नए साल की बधाई

न तलाक का इरादा

इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए

सारा मुद्दा, सारा पत्र

पोस्टमैन का रक्तहीन चेहरा है

जो रोज गाँजा जा रहा है

और जिसे शाम को वह जमा भी नहीं कर सकता।