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अंतर मैं बासी / घनानंद
Kavita Kosh से
अंतर मैं बसी पै प्रवासी कैसो अंतर है,
मेरी न सुनत दैया ! आपनीयौ ना कहौ.
लोचननि तारे ह्वै सुझायो सब,सूझी नाहीं,
बुझि न परति ऐसी सोचनि कहा दहौ.
हौ तौ जानराय,जाने जाहु न अजान यातें,
आँनंद के घन छाया छाय उघरे रहौ .
मूरति मया की हा हा! सूरति दिखैऐ नेकु,
हमैं खोय या बिधि हो!कौन धी लहालहौ.