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अंतर व्यथा / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
समझ नहीं पाया मैं किसने आकर किसकी कथा कहीं है ?
मस्कानों में अश्रु बहे हैं आँसू में मुस्कान बही है ।
मेरे मन की पीड़ाओं का मापन कौन यहाँ कर पाये ?
जब न किसी ने सघन विरह की दाहक अन्तर व्यथा सही है ।
नहीं मंच की सब कविताओं उम्र दराज हुआ करती हैं
प्रस्तुति लोकलुभावन लगती पर लगता प्रस्तुत सतही है ।
नित्य जिन्दगी की परिभाषा को मिलते सोपान नये हैं
प्रश्न चिन्ह है लगा हाल पर, पर शब्दों का जाल सही है ।