ज़िन्दगी का
एक तरफ़ा फैसला
रद्द करते हैं हम
बिन रुके मौत की जानिब
बढ़ते क़दम
वाक़ई हद करते हैं हम
मर मर के जी रहे हैं
जीते जी भी
मरे जा रहे हैं लोग
ठेके पर उठाई जा रही हैं मय्यतें
अपनों से छुपाई जा रही हैं मय्यतें
अश्कों के फूल तक
यहाँ वहाँ बिखर गये
और साये हमारे जिस्म के
बहुत क़रीब से होकर गुज़र गये
देखते ही देखते अंतिम क्रिया
और उसके स्थान सभी
आनन फानन में भर गये
नामालूम
कितनी शाखें वीरान हुईं
और कितने बागों के फूल
इन ज़हर आलूद॥
हवा के झोंकों से
लम्हों में झर गये
ज़िन्दगी का
एक तरफ़ा फैसला
रद्द करते हैं हम
मुस्तरद करते हैं हम॥