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अंतिम छंद / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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सात बरख केर जखन वयस छल
विहुंसल मन उजड़ल मकरन्द
एखनहुँ क्षण - क्षण हिय सँ उफनय,
माय जे वाजलि अंतिम छंद
सुनू पूत हम छाड़ि अवनि केॅ,
जा रहलहुँ विधना केर घऽर
अपन तात केॅ कोॅचा पकड़ू,
मानि जननि शीतल आँचर
हमर चरण धऽ लियऽ अहाँ प्रण
तनय धरम केर राखब मान
कर्म डगरि पर हमर छाँह संग,
बढ़ब करैत पितृक सम्मान
हंसवाहिनी चरण मे अर्पित,
अपन शीश दऽ सोखब ज्ञान
नीच बाट पर डेग नहि राखब,
जीवन मे करब नहि सुरापान
केहन दृष्ट अदृश्य व्याधि ई,
सभ किछु बूड़ल अहाँॅ भेलहुँ दीन।
हिय नहि हाँरू एहि अखिल भुवन मे,
छथि कतेक लाल साधन विहीन।
अम्बुज अहाँॅ केॅ हमर शपथ थिक -
विलोचन सँ जुनि बहबू नोर
शिखर लक्ष्य केॅ निश्चित साधव,
दैत मातृ स्मृतिक वोर
हुनक दिव्य आशीष प्रताप सँ,
भेल धन, मन, यश पूरित जीवन
मुदा ‘माय’ गुंजन जौ सुनि हम,
रोम-रोम सँ उपटय क्रन्दन