भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतिम बचाव / मंजुला बिष्ट
Kavita Kosh से
बन्धु!
कैसे करोगे मुक़ाबला
अपने पीछे भागती वैचारिक हिंसक भीड़ का
अल्लाओगे तो वे तत्क्षण सजग हो उठेंगे
चीखोगे तो वे मासूम अनभिज्ञ बन जाएंगे
सार्वजनिक मान-मनोवल की तो ख़ैर
वे नौबत ही न आने देंगे
तो फ़िर बचाव क्या है,बन्धु!
अंतिम बचाव !
बचाव वही है
जो बचपन में माँ की मार से बचने के लिए करते थे
उस हिंसक भीड़ के सम्मुख नतशिर हो बैठ जाना!
यदि उसके सारे हथियार लज्जित न भी हों
तो भी तुम्हारे बचने की एक फ़ीसदी संभावना है!
भीड़ में से कुछेक जरूर
या तो तुम्हें छोड़ देंगे
या तुम्हें बख़्सने पर दम्भी हुँकार भरकर प्रशस्ति-पत्र पाएंगे
भीड़ का प्रहार एकमेव होता है
लेक़िन टूटते वे कड़ियों में ही हैं
इसलिए डरो नहीं मुक़ाबला करो,बन्धु!