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अंतिम विकल्प / निधि अग्रवाल

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कल रात सपने में यीशु आए थे,
नहीं वे अल्लाह के कोई पैगम्बर थे
या शायद कोई देवदूत
या स्वयं कोई देव भी हो सकते हैं।

मेरे सपनों का संसार उलझा हुआ है,
यहाँ पिता, माता, भाई, बहन एकरूप हो जाते हैं।
सपने रंग- रूप से नहीं अनुभूतियों से संचालित होते हैं।
स्वप्नपुरुष हताश लज्जित और क्रोधित थे,
वे अपना अंतिम संदेश देने आए थे।
उनका कहना था कि सारे विवादित धर्मस्थलों पर
लगा दिए जाने चाहिए फलदार वृक्ष,
सूरज और वर्षा को बाग़बान बनाना होगा।

पंछियों के हिस्से आऍंगी,
पाँचों वक़्त की नमाज़ और आरती।
वे प्रार्थना की ऐसी दुर्लभ भाषा जानते हैं,
जिसमें किसी के अहित का आह्वान नहीं है।
उनके झुंड में आने से भी कोई
अपने दरवाज़े बंद नहीं करता,
न कोई अग्नि स्नान करता है।

जुगनू रात्रि दीप बालेंगे,
वहाँ बढ़ने दो आकाश छूती लताऍं
जो स्वर्ग नहीं ले जातीं बल्कि
धरती को जन्नत बनाती हैं।
उनके नीचे बिछाना घास का ऐसा क़ालीन
जहाँ किसी के कोई पदचिन्ह न छूट पाऍं।
पाट दो सारे आँगन- दालान फूलों से
कि उनको अगरबत्ती जलाना आता है।
फलों का प्रसाद बंटवा दो
उन अनाथ बच्चों में,
जिनके माता पिता को
तुम्हारी अमानवीयता ने छीन लिया है।
उनकी शिकायतों से फटने लगे हैं अब मेरे कान
और भर गए हैं सारे रजिस्टर,
मैं गिनती में उलझ गया हूँ और दोषी बदल ले रहे हैं
प्रतिक्षण अपना भेस,
मैं न्याय विलंबन का दोषी बनता जा रहा हूँ।
गुनाहगार तो मैं उस भेड़ का भी हूँ
जिसका गला मेरी दयालुता सिद्ध करने,
रेत दिया गया
और उस बालगज का भी
जिसका मस्तक आज हर मंदिर में स्थापित है।

उनका भी जिन्हें मेरे नाम पर निर्वस्त्र कर
 ठहाके लगाए गए,
और उनका भी जिन्हें नृशंस, निरंकुश हिंसा की भेंट चढ़ा दिया गया।
और गिलहरी,खरगोश जैसे
अन्य निरीह जंतुओं का भी
जो इस उन्माद में अकारण ही मृत्यु पाए।
मैं अपने गुनाहों का पश्चाताप चाहता हूँ।
कृपया
तुरंत आदेश से नष्ट कर दिए जाए सारे धर्मस्थल
कि वहाँ दूषित विचारों की सडांध
बढ़ती जा रही है।

 मेरी परम प्रिय संतानों!
बेदखल करता हूँ आज तुमको अपनी सत्ता से
कि मेरे प्रेम को तुमने कलंकित किया है।
रक्तरंजित हाथों में सौंप कर अपनी कमान
शवों से अवरुद्ध रास्तों पर आगे बढ़ना,
अगर अंतिम विकल्प है मेरे बचने का
तब मैं परमशक्ति का प्रतीक?
अपने तमाम संबोधनों, अवतारों, पैगंबरों,
और अनुयायियों संग
मृत्यु का आलिंगन करता हूँ।