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अंतिम साँसे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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41
छाती है फटी
आँसू भी सूख गए
रो न सके धरती,
बाघ-सा साल
मुँह बाए खड़ा है
खेत पड़े परती ।
42
निहोरा करें
पथराई है आँखें
अम्बर न सुनता
मातम हुआ
सब दिन हैं फ़ाक़े
घर में किसानो के ।
43
बोती मुस्कान
अलसाई चाँदनी
भीगे धरा-गगन,
व्याकुल झील
घूँट-घूँट पी रही
करके आचमन ।
44
थकी किरनें
मिले धरा -गगन
क्षितिज शरमाया
गिरा सिंधौरा
संझा की हथेली से
नभ हुआ सिन्दूरी
45
परछाई-सा
सुख हो या दु:ख हो
सदा खड़ा रहेगा
साथ तुम्हारे
रुकना नहीं कभी
चलती ही रहना ।
46
आखर मेरे
गूँगे हो जाएँगे
गीत नहीं गाएँगे
छल से छीनी
मेरी शीतल छाया,
आशियाना जलाया ।
 47
आस की बूँद
यह नेह तुम्हारा
मोती जैसा दमके
मन के नभ
ध्रुव तारा बनके
हर पल चमके ।
48
गीतों में तुम
तुम ही हो छन्दों में
सारे अनुबन्धों में
बिना तुम्हारे
परस पाए रंग
हो जाते बदरंग्।
49
अन्तिम साँसे
जब हों प्रियवर
नाम तुम्हारा लूँगा
तुमसे पाया
मैंने मन का कोना
वापस नहीं दूँगा ।
50
क्या पाना -खोना
सदा धूल बटोरी
फिर भी इतराए,
भावों का सिन्धु
अर्पण कर हम
क़तरा भी न पाए ।