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अंधी सदी / रमेश चंद्र पंत
Kavita Kosh से
जन्मना
कुछ अर्थ सच में,
रख सकेगा क्या?
निर्वसन मिलती यहाँ
हर रोज़ ही
अक्सर नदी है,
मरुथलों में दूर तक
फैली हुई
अंधी सदी है,
गुलमोहर
कुछ अर्थ अपना,
रख सकेगा क्या?
देह पर अनगिन खरोचें
ढो रहीं
हर क्षण दिशाएँ,
बस! व्यथाएँ-ही-व्यथाएँ
और हैं
शापित कथाएँ,
गीत यह
कुछ अर्थ अपना,
रख सकेगा क्या?