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अंधी हिंसा के दौर में / राग तेलंग
Kavita Kosh से
अब हर फूल खून से नहाया हुआ है
बगीचे सूने पड़े हैं
सुबह की ठंडी हवा में सैर
कल की बात हुई
कमीज़ों पर छींटों का रंग सिर्फ सुख़्ाZ है
जिनमें समाए हुए हैं डरे हुए जिस्म
मासूमों का चुंबन लेने से पहले
सोचना पड़ता है
कहीं ये एक नई वजह तो नहीं
दहशत फैलने की
बारूदी रोशनी के अंधे दौर में
सितार के तार की फीकी पड़ती चमक और
उसके सुरों में डुबो देने वाले अध्यात्म का पता कहीं खो गया है
आजादी में पनपा हुआ प्रेम भी लापता हुआ
स्मृतियों का क्षरण होने से
प्रतिकार का साहस भी
जाता रहा ।