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अंधेरे और रोशनी के थरथराते पु़ल पर / नीलोत्पल

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मैं खड़ा
अंधेरे और रोशनी के
थरथराते पु़ल पर
लौटना नामु़मकिन

रोशनियां बरस रहीं
पु़ल के बीचों-बीच
हमारे वस्त्र इतने झीने हैं
कि रोशनी की एक छोटी किरण भी
उघाड़ देती है
पत्थरों में दबी हमारी परछाईयों को

मैं नहीं सोच पाता
और घिर जाता हू़ं असमाप्त जगहों से

वर्षो तलक रंगते हैं कीड़े
हमारे आसपास
वे किसी के पार नहीं जा पाते
न सच, न रोशनी, न समय के

मैं देखता हू़ं पृथ्वी की आंखों से
सारे मृत कीड़े
प्रायः जिनकी अनु़पस्थिति में
पाता हू़ं ख़ुद को मौजू़द
मु़झमें दरारें आने लगती हैं
मैं बिलाया जाता हू़ं अपने ही दरों में

अजीब संतु़लन है बारिश का
भरा हु़आ, मैं लत्तर, जड़ों, दीवारों
और आंखों के सहारे आ जाता हू़ं सतह पर

यही समय है
जब मैं जान पाता हू़ं अपने नष्ट होने को
दिन का उगना, अस्त होना दो छवियां हैं

मैं कई छवियों और चेहरों को लिए
उतरता हूं
जीवन की अबूझ खोह में
मुझे नापसंद है, कोई जीवन को बेईमान कहे
हां, प्राकृतिक तौर पर
मैं कुछ धंसा हुआ ज़रुर हो सकता हूं
ऐसे खढ्डों में जो तैयार थे पहले से ही
कुछ में, मैं ही धंसा था

यह जीवन की नहीं
ख़ुद की लड़ाई है

मैं ऐसे चेहरों का भी गवाह हूं
जो सफ़ेदी और चमत्कार के आवेश में
एक बने हुए चित्र पर रंग भरते हैं
और अपनी पसंद जतलाते हैं

यह एक भ्रम है हम रास्ता बनाएंगे
रास्ते खुदाई के दौरान मिलते हैं

नाम, लेपन वगैरह
शब्दों का बड़ा ज़खीरा है
दरअसल चीज़ों से बाहर आना
हमारी छवियों को धूमिल करता है

हमारी अस्वीकृत छवियां
उलझे हुए समुद्र की तरह
किनारों पर आकर मिल जाती हैं रेत में
 
मैं उन छवियों को चिन्ह्ना चाहता हूं
कुछ भी संभावना बनाए जाने से पहले