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अंधेरे के अर्जुन / रमेश कौशिक
Kavita Kosh से
ये रोशनी
नहीं होने देंगे
रोशनी होगी
तब ये कहाँ होंगे
अंधेरे में द्रोपदी को
भोगते रहना ही
काम्य है
आज के अर्जुनों का
साम्य है